पेट के रोगों में उपवास !
पेट के रोगों में उपवास का सर्वाधिक महत्व है I रोगों की अवस्था के अनुसार अर्ध उपवास, एकाहार रसोपवास, फल उपवास, दुग्ध उपवास, मठ्ठा उपवास कराया जाता है I पूर्ण उपवास में सादे जल के अलावा कुछ नहीं दिया जाता है I
उपवास विधि - मानसिक रूप से स्वयं को तैयार करें और शारीरिक दृष्टि से प्रारम्भ में दो दिन भोजन की मात्रा आधी कर दे और फल तथा सब्जियां बढ़ा दीजिये I एक दो दिन सिर्फ एक समय रोटी सब्जी और सलाद लीजिये और दुसरे समय फल लीजिये I एक से तीन दिन फलाहार, फिर एक से तीन दिन रसाहार, पुनः एक से तीन दिन निम्बू का पानी, शहद लें I रोगी की शारीरिक, मानसिक अवस्था देखते हुए दो तीन दिन तक संतरे के रस पर रहते हुए सीधे उपवास पर आ जाएं I उपवास के दौरान मल सूख जाता है, उपवास के पहले अर्द्धशंख-प्रछालन या नाशपाती, आंवला, करेले के रस से पेट को पूर्ण साफ़ कर लेना चाहिए I उपवास के दौरान एनीमा, मिटटी-पट्टी, मालिश, धूप स्नान, टहलना,आसन, प्राणायाम,कुंजल आदि चिकित्सऱोग के अनुसार करें I इस दौरान एक घंटे के अंतराल पर एक गिलास पानी में निम्बू निचोड़कर पीते रहे I
उपवास तोड़ने की विधि - लम्बे उपवास में कुछ परेशानी होती ही है, फिर कोई कठिनाई नहीं होती है I लम्बा उपवास करना जितना सरल है, तोडना भी उतना ही कठिन है I यदि वैज्ञानिक ढंग से उपवास नहीं तोडा जाए तो मरीज की मृत्यु तक हो सकती है I उपवास तोड़ते समय जल्दी पचने वाले फलों के रस में पानी डालकर मिला लें, जिससे की पाचन तंत्र भोजन ग्रहण करने की आदत दाल सके I संतरे के १२५ मिलीलीटर रस में १०० मिलीलीटर जल मिलकर धीरे धीरे चूसते हुए पियें। संतरा उपलब्ध न हो तो निम्बू का रस और दो चम्मच शहद में एक गिलास पानी मिलकर पियें या बीस तीस मुनक्का, किशमिश, भिगो मसलकर छानकर पियें I दुसरे दिन से रस या सब्जियों के सूप की मात्रा धीरे धीरे बढ़ाते जाएं तथा क्रमशः उबली सब्जी, फल,चपाती की पपड़ी,पतला डालिए लें। संतरा, पपीता, अंगूर,टमाटर,सेब,केला, जैसे फल बहुत उत्तम हैं I
जितने दिन उपवास करें कम से कम उतने ही दिन सामान्य आहार पर आने में लगना चाहिए I उपवास के समय और उपवास तोड़ने के समय पर्याप्त मात्रा में पानी पीना अत्यंत अनिवार्य है I पानी नहीं पीने से विजातीय द्रव्य बाहर नहीं निकल पाते एवं तरह तरह के उपद्रव होने लगते हैं।
किनके लिए मनाही है - गर्भवती स्त्रियां, स्तनपान कराती हुई स्त्रियां, कमजोर बच्चे, ह्रदय रोगी, मधुमेह, तपेदिक का रोगी, कृश व्यक्ति,सुकोमल प्रकृति के व्यक्ति को लम्बे उपवास नहीं करना चाहिए I
लाभ - पेट के समस्त रोग - दमा, गठिए, आमवात, सन्धिवात,त्वक विकार, चर्मविकार,मोटापा,आदि पुराने रोगों में उपवास एक सर्वोत्तम निसर्गोपचार है।
सलाह है की लम्बे या दीर्घ उपवास किसी विशेषज्ञ के निर्देशन में ही किया जाये और लाभ लिया जाय।
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